कोरवा (कोरबा)छत्तीसगढ़

भू -अर्जन, विस्थापन से उत्पन्न समस्या ‘पुनर्वास, पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम में निहित अधिकारों का हनन और प्रबंधन द्वारा दमनात्मक कार्यवाही के खिलाफ मानव अधिकार आयोग जनजाति आयोग से की गई शिकायत…

जनप्रतिनिधियों सहित विभिन्न संगठनों ने सामूहिक शिकायत किया है

 

इंडियन महानायक न्यूज 24 समाचार

छत्तीसगढ//कोरवा (कोरबा)

ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति द्वारा विगत दिनों सम्मेलन कर जिले के कोयला खदानों और अन्य संस्थानों में भूविस्थापितों की शोषण और उनके समस्याओं पर 11 सूत्रीय प्रस्ताव व मांग रखते हुई आंदोलन की रूपरेखा तैयार किया था । रखे गये प्रस्ताव पर खनन प्रभावित क्षेत्रों के समस्त जनप्रतिनिधियों सहित जन संगठनों ने अपनी सहमति प्रदान किया था और प्रथम चरण में सामूहिक हस्ताक्षर युक्त मांगपत्र केंद्रीय मानव अधिकार आयोग, जनजाति आयोग , कोयला व खान मंत्री , पर्यावरण मंत्रालय सहित सबधित संस्थाओं और विभागों को पत्र लिखकर समस्याओं के निराकरण करने की मांग किया है । उपरोक्त बातों की जानकारी संगठन के अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने अपने प्रेस विज्ञप्ति में दी है ।

उन्होंने बताया कि जिले में आद्योगिकीकरण और देश हित का हवाला देकर जिले के किसानों और भूविस्थापित परिवारों को तबाह किया जा रहा है और न्याय नही मिलने पर आंदोलन कर रहे लोंगो पर दमन की कार्यवाही हो रही है जिसके खिलाफ अब सयुंक्त आंदोलन लड़ी जाएगी जिसकी पहल ऊर्जाधानी संगठन की ओर से की जा रही है । भूविस्थापित नेता ने बताया कि प्रभावित क्षेत्र के सभी जनप्रतिनिधियों और जनसंगठनों की ओर से सामूहिक पत्र भेजी गई है और आगामी दिनों में सयुंक्त आंदोलन शुरू किया जाएगा ।

भेजे गये पत्र में कहा गया है कि कोरबा क्षेत्र में औद्योगीकरण 60 के दशक से शुरू हो गया था और अब बड़े पैमाने पर कोयला खनन, पॉवर प्लांट से होने वाले बिजली उत्पादन और आपूर्ति के चलते इस क्षेत्र के खनिज संसाधनों का दोहन, परियोजनाओं का विस्तार और खनिज परिवहन (नई रेल लाइन) भी राष्ट्रिय हित में लगातार हो रहा है। इन परियोजनाओं के चलते बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया हुई और स्थानीय समुदाय को अपने निवास गाँव, कृषि भूमि और वन भूमि जिस पर इनके पारंपरिक निस्तार और अधिकार निहित थे उससे विस्थापित होना पड़ा |

आज तक भी भू-विस्थापितों को पूर्ण एवं विधिवत पुनर्व्यवस्थापन नहीं मिल पाया जो उनका अधिकार है।आज की स्थिति में बात करें तो भू-अर्जन का कानून बदल कर अब भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 लागू है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति, 2007 भी लागू है। इसके साथ ही मुआवज़ा को लेकर राज्य शासन के विभिन्न आदेश भी मौजूद है जिसका मकसद है भू-अर्जन के एवज में लोगों को उचित प्रतिकर उपलब्ध करवाना। इन सब के बावजूद आज भी भू-विस्थापितों जिनसे भूमि का अर्जन दशकों पहले किया जा चूका है लेकिन उनके रोजगार, मुआवज़ा और पुनर्वास आज भी लंबित है। जिनके निराकरण के लिए केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के संस्थाओं और विभिन्न विभागों से मांग किये जाने और आवश्यकता होने पर आंदोलन को और तेज करने का आव्हान किया गया तथा अलग अलग मंच से किये जा रहे संघर्षो की एकता स्थापित करने के लिए प्रयास किये जाने का निर्णय लिया गया है ।

जिन प्रस्तावों के आधार पर आगे की रणनीति पर कार्यवाही तेज होगी उसमे बताया गया है कि जिले की पुनर्वास समिति अपना काम सही ढंग से नही कर रही है और केंद्रीय सरकार द्वारा पारित भूमि, अर्जन, पुनर्वासन, पुनर्वव्यस्थापन में उचित प्रतिकर पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2015 का पालन करने , परियोजना स्तर पर पुनर्वास समिति का गठन करने , वन भूमि पर आश्रित जनजाति व अन्य परम्परागत निवासियों के अधिकार का सरंक्षण , भावी पीढ़ियों के रोजगार ,अर्जन के बाद जन्म होने वाले को रोजगार ,

बंद होने वाले खदानों की बैकफ़ीलिंग , आउटसोर्सिंग कामो में स्थानीय व भूविस्थापित बेरोजगारों की 80 प्रतिशत भर्ती सुनिश्चित करने ,युवाओं और महिलाओं की कौशल उन्नयन, व रोजगार की व्यवस्था करने , पुनर्वास व प्रत्यक्ष प्रभावित ग्रामो में शिक्षा ,स्वास्थ ,रोजगार के साथ बुनियादी

सुविधाओं में विस्तार करने , अर्जित ग्रामो के मकान व अन्य परिसम्पत्तियों की केंद्रीय मूल्यांकन बोर्ड के मार्गदर्शिका के अनुसार मुआवजा भुगतान , हैवी ब्लास्टिंग और गांव के नजदीक खनन कार्य पर रोक लगाने , आंदोलन के सविंधानिक अधिकार के दमन कार्यवाही बंद करने की मांग की गयी है ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!