ग्रामीणों ने दिखाया हौसला: शासन की अनदेखी के बीच बांस-बल्लियों से बनाया देसी पुल
इन्डियन महानायक न्यूज
Indian mahanayak news 24live/6अगस्त 2025
विकास की मुख्यधारा से कटे धुर नक्सल प्रभावित मानपुर ब्लॉक के ग्रामवासियों ने वह कर दिखाया, जो शासन-प्रशासन वर्षों से नहीं कर सका। बसेली और खुर्सेखुर्द गांव के बीच बहने वाला बड़ा नाला जब ग्रामीणों के लिए आवागमन की त्रासदी बन गया, तब उन्होंने बांस-बल्लियों और स्थानीय संसाधनों की मदद से खुद ही एक देसी पुल तैयार कर डाला।
बारिश के दिनों में यह नाला न सिर्फ स्कूली बच्चों के लिए खतरा बन चुका था, बल्कि राशन, स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य जरूरी आवाजाही पर भी भारी असर डाल रहा था। शासन-प्रशासन से कई बार मांग और आवेदन के बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तब ग्रामीणों ने एकजुट होकर इस समस्या का समाधान खुद खोजना तय किया।
देसी जुगाड़ से बना राहत का रास्ता
पुल निर्माण के लिए दोनों गांवों में काम-काज और खेती-किसानी तक बंद कर दी गई। हर घर से लोग नाले के किनारे जुटे और बांस-बल्लियों की मदद से एक मजबूत, देसी पुल तैयार किया गया। पहले नाले के दोनों किनारों को बांस की मोटी चटाई से मजबूती दी गई, फिर उसके ऊपर लकड़ियों और बल्लियों से एक मजबूत आधार तैयार किया गया। ऊपर से फिर से बांस की चटाई बिछा दी गई, जिससे अब स्कूली बच्चे और ग्रामीण बिना पानी में उतरे सुरक्षित आवाजाही कर पा रहे हैं।
बस्तर को जोड़ने वाले रास्ते पर भी बनी राह
यह अस्थायी पुल सिर्फ दो गांवों को ही नहीं जोड़ता, बल्कि यह रास्ता बस्तर के मुहाने और कांकेर जिले से जुड़ने के लिए भी बेहद जरूरी है। पंचायत मुख्यालय बसेली तक की पहुंच और राशन वितरण जैसी बुनियादी जरूरतें अब इस देसी पुल के चलते पूरी हो पा रही हैं। जल्द ही यदि मुरुम की परत डाल दी जाए तो इस पुल से ट्रैक्टर और चारपहिया वाहन भी गुजर सकेंगे।
कारीगरी की मिसाल, लापरवाही पर तमाचा
मीडिया ने ग्रामीणों के बुलावे पर मौके पर जाकर इस अनूठे निर्माण को नजदीक से देखा और स्थानीयों की पीड़ा को समझा। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने वर्षों तक प्रशासन से उम्मीद की, आवेदन दिए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इस निर्माण ने न सिर्फ प्रशासन की विफलता को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे सामूहिक प्रयास और इच्छाशक्ति से बिना किसी तकनीकी ज्ञान के भी असंभव को संभव किया जा सकता है।
यह पुल उन भ्रष्ट निर्माण कार्यों पर भी करारा तमाचा है, जो लाखों की लागत से बनने के बाद भी कुछ ही वर्षों में टूट जाते हैं। मानपुर ब्लॉक के कोहका पंचायत में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े पुल की मिसाल सामने है।
अब क्या शासन-प्रशासन लेगा संज्ञान?
प्रश्न अब यह है कि क्या शासन-प्रशासन अब इन ग्रामीणों की जरूरतों और समस्याओं को गंभीरता से लेगा? क्या कलेक्टर और जिम्मेदार जनप्रतिनिधि अब इस क्षेत्र में पक्का पुल निर्माण के लिए उचित पहल करेंगे?
ग्रामीणों ने अपनी तकलीफों पर खुद मरहम लगा दिया है, लेकिन शासन की जवाबदेही अब भी बाकी है। यह देसी पुल सिर्फ एक रास्ता नहीं, बल्कि यह क्षेत्रीय विकास, आत्मनिर्भरता और जमीनी हकीकत का आईना है।